प्राचीन भारतीय चित्रकला के षडांग - सामान्य अध्ययन-भूगोल, विज्ञान, इतिहास, कला और संस्कृति

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Thursday, June 4, 2015

प्राचीन भारतीय चित्रकला के षडांग

मानव सभ्यता के आरम्भ से ही चित्र मनुष्य की भावाभिव्यक्ति के साधन रहे हैं . वस्तुतः भाषा और लिपि के आविष्कार से भी पहले मनुष्य ने आत्माभिव्यक्ति के लिए चित्रकारी को अपनाया . आदिमकालीन गुफाओं से मिले रेखाचित्र इसके प्रमाण हैं . भीमबेतका और होशंगाबाद की गुफाओं से मिले चित्रों से स्पष्ट है कि भारत में भी चित्रकला का विकास प्रागैतिहासिक काल के दौरान ही हुआ . हड़प्पा सभ्यता से शुंग काल के मध्य चित्रकारी के पुरातात्विक साक्ष्य तो प्राप्य नहीं हैं ,लेकिन वैदिक साहित्य और उनके बाद बौद्ध ग्रंथों में भी चित्रकला की चर्चा इस बात का प्रमाण है कि उस काल के लोग चित्रकला से अनजान नहीं थे .
                                पहली शताब्दी ई पू के आस पास से भारतीय चित्रकला के महत्वपूर्ण साक्ष्य मिलने लगते हैं .अजंता की गुफाओं के कुछ शुरूआती चित्र भी लगभग इसी समय के माने जाते हैं . जातक कथाओं पर आधारित बौद्ध धर्म से संबंधित ये चित्र प्रारंभिक भारतीय चित्रकला के अत्यधिक महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं .
भारतीय चित्रकला के षडांग : संभवतया प्रथम शताब्दी ई पू के आस पास ही भारतीय चित्रकला के षडांग (Six Limbs of Indian painting ) विकसित हुए . तीसरी सदी (अनुमानित) के वात्स्यायन अपनी पुस्तक कामसूत्र में षडांग की विस्तृत चर्चा करते हैं , लेकिन ऐसा प्रतीत होता कि यह सिद्धांत वात्स्यायन के काफी पहले से ही अस्तित्व में था . भारतीय चित्रकला के ये 6 अंग निम्नलिखित हैं :
(i)                  रूपभेद : प्रत्यक्ष के विभिन्न रूपों का ज्ञान
(ii)                प्रमाणम : परिप्रेक्ष्य ,माप और संरचना का ज्ञान
(iii)               भाव : अनुभूतियों के चित्रण का ज्ञान
(iv)              लावण्य योजनम : सौन्दर्य सृष्टि और कलात्मक प्रस्तुति
(v)                सादृश्यं : दो  विभिन्न वस्तुओं में समानता का ज्ञान
(vi)              वर्णिकभंगम : कूची और रंगों का कलात्मक प्रयोग

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