राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित भीष्म प्रतिज्ञा |
केतन
मेहता निर्देशित ‘रंग रसिया ‘ फिल्म ने वक्त की धूल-गर्द में दबे राजा रवि वर्मा के
नाम को धो पोंछ कर फिर से जनमानस के सामने रख दिया .राजा रवि वर्मा के नाम से अपरिचित
लोग भी उनके बारे में जिज्ञासा प्रकट करते देखे गए . वैसे , यह एक दुखद आश्चर्य है
कि आधुनिक भारतीय चित्रकला के शलाका पुरुष राजा रवि वर्मा का नाम यह देश सौ –डेढ़ सौ सालों तक भी याद नहीं
रख सका .
राजा रवि वर्मा का जन्म केरल के एक छोटे से गाँव
किलिमन्नूर में उमा अंबा तथा इजुमाविल
नीलकांतन भट्टत्रिपाद के यहाँ 1848 ईस्वी में हुआ .चाचा
राजा राजा वर्मा ने पहली बार बालक रवि वर्मा की प्रतिभा को पहचाना और उसे त्रावणकोर के महाराजा अयिल्लम तिरुनल के पास ले गए, जहाँ उसने दरबारी चित्रकार रामास्वामी नायकर से जलरंग चित्रकारी सीखी। यहीं
राजा रवि वर्मा का परिचय संस्कृत और मलयालम के मिथकीय और पौराणिक साहित्य संसार से
हुआ , जिसने उनकी कला चेतना को और समृद्ध बनाया .
राजा रवि वर्मा यथार्थवादी
शिल्प और तैल रंगों (आयल कलर्स ) का प्रयोग करने वाले पहले भारतीय चित्रकार माने
जाते हैं .यूरोपीय यथार्थवाद के प्रयोग ने राजा रवि वर्मा के चित्रों को सही
परिप्रेक्ष्य प्रदान किया .वियेना की चित्र प्रदर्शनी में राजा रवि वर्मा ने
स्वर्ण पदक प्राप्त किया और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा . ड्यूक ऑफ़ बर्मिंघम ने
उनकी चित्रकृति ‘शकुंतला’ के लिए 50 हज़ार अदा किये . जिस समय यूरोपीय चित्रकार
अपने चित्रों में भारत को भूखे –नंगों और जादू-टोने के देश के रूप में चित्रित कर
रहे थे , उस समय राजा रवि वर्मा ने अपने चित्रों के विषय के रूप में भारत के
मिथकीय और पौराणिक चरित्रों को उठाया . इसके अतिरिक्त उन्होंने शिवाजी और बाल
गंगाधर तिलक के पोर्ट्रेट भी बनाए . राजा रवि
वर्मा ने धुन्धिराज गोविन्द फाल्के (दादा साहब फाल्के) के साथ मिलकर मुंबई में एक
छापाखाना भी स्थापित किया .1906 में अपनी मृत्यु के समय तक राजा रवि वर्मा चित्रकारी
करते रहे
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