प्रस्तर युग: पुरा पाषाण काल - सामान्य अध्ययन-भूगोल, विज्ञान, इतिहास, कला और संस्कृति

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Thursday, September 28, 2017

प्रस्तर युग: पुरा पाषाण काल


नवीनतम अनुसंधानो और अध्ययन से ज्ञात होता है कि मानव लगभग 30 लाख वर्ष पुराना है. आदिम मानव के जीवाश्म भारत में नहीं मिले है. मानव के प्राचीनतम अस्तित्व का संकेत द्वितीय हिमावर्तन (ग्लेसिएशन) काल के बताए जाने वाले संचयों में मिले पत्थर के औजारों से मिलता है  जिनका काल लगभग 2,40000 . पू. रखा गया.
अफ्रीका की अपेक्षा भारत में मानव बाद में बसे. भारत में आदिम मानव द्वारा पत्थर के अनगढ़ और अपरिष्कृत औजारों का इस्तेमाल, औजार सिन्धु, गंगा और यमुना के कछारी मैदानों को छोड सारे देश में पाए गए. शिकार से जीवन यापन करते  थे, खेती  करना और घर बनाना नहीं जानते थे. पुरापाषाण काल मानव द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पत्थर के औजारों के स्वरूप तथा जलवायु में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर पूरा पाषाण काल को तीन भागों में विभक्त किया जाता है-
(1)    निम्न पुरापाषाण काल -2,50,000 . पू. और 1,00,000 . पू. के बीच
(2)    मध्य पुरापाषाण काल - 1,00,000 . पू. और 40,000 . पू.
(3)    उच्च पुरापाषाण काल -40,000 . पू. और 10,000 .पू. के बीच.
निम्न- पुरापाषाण युग के लक्षण हैं कुल्हाड़ी या हस्त- कुठार, विदारणी और खंडक. अधिकाश हिमयुग इसी युग से गुजरा. इस युग के स्थल विशेषकर सोहननदी की घाटी, पश्चिमी भारत में डीडवाना,चितौडगढ़, नागरी, गुजरात की साबरमती घाटी, मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी में नरसिंहपुर और होशंगाबाद, उतर प्रदेश में सिंगरौली बेसिन, पूर्वी क्षेत्र में कुलियाना और कमारपाड़ा, पश्चिम बगांल की बांकुरा जिले की सिसुनिया पहाड़ी तथा प्रायद्वीप आदि. ये लोग आम तौर पर जलस्त्रोंतो के पास रहते थे,क्योंकि  उनके पास पानी रखने या उसे ले जाने वाले बर्तन नहीं थे. इस युग के मानवीय जीवाश्म नहीं मिलते.
मध्य-पुरापाषाण काल में उद्योग मुख्यतः शल्क से बनी वस्तुओं का था. मुख्य औजार शल्क से बने विविध प्रकार के फलक, वेधनी, छेदनी और खुरचनी. इस युग के स्थल विशेषकर महाराष्ट्र के गोदावरी और उसकी उपधाराओं की घाटियों में पाए गए, इन स्थलों में नेवासा सुरेगांव, बेल पंढारी और नन्दूर मधमेश्वर आदि शामिल है. हाल की खुदाइयों से पश्चिम बंगाल के बांकुरा और पुरूलिया नामक स्थान भी इनसे जुड़ गए है. अग्नि का ज्ञान हो गया था लेकिन मानव प्रकृतिजीवी था.
उच्च पुरापाषाण काल में मौसम की ठंडक बहुत हद तक कम हो चुकी थी. विश्वव्यापी संदर्भ में इसकी दो विलक्षणताएँ - नए चकमक उद्योग की स्थापना और आधुनिक प्रारूप में मानव (होमोसेपियन्स) का उदय. इस युग के महत्वपूर्ण स्थलों में रेनुगुन्टा (आन्ध्र प्रदेश) मुच्छतला चिन्तमनु गवई (आन्ध्र प्रदेश) भीमवेटका, बाघोर (मध्य प्रदेश) तथा बेलन घाटी (इलाहाबाद, . प्र). प्रमुख है. इस युग के प्रमुख औजार फलक (रेनुगुन्टा से बरामद) तथा तक्षणी हैं.
इस युग की महत्वपूर्ण घटनाए हैं
  •  नई दुनिया और आस्ट्रेलिया सहित संसार के बसने लायक अधिकतर भागों में मानव का फैलाव,
  • अनेक प्रकार की हड्डियों के बने औजारों (मुच्छतला चिन्तमनु गवई से प्राप्त) ,सुइयों तथा मत्स्य बर्छियों (हार्पुन) का प्रादुर्भाव,
  • सापेक्षतया बडे पैमाने पर और एकाएक कला और अनुष्ठानों को प्रतिबिम्बित करने वाली छोटी मूर्तियों चित्रकारी का प्रादुर्भाव,
  • मानव समूहों का रक्त सम्बन्धों या बन्धुत्व के रिश्तों में बांध कर उन्हें संगठित करने का ठोस प्रयास.

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