नव पाषाण युग में समाज में अनेक आर्थिक और दूरगामी परिवर्तन हुए.
इस युग का मानव खाद्य उत्पादक था.
आरम्भ 7000 ई.पू. , भारत में पायी गई बस्तियां 4000 ई. पू. से पुरानी नहीं.
भारत में इस युग के अवशेष पाये जाने वाले स्थल - कश्मीर में बुर्जाहोम , गुफ्फकरल और मार्तड, दक्षिण में ब्रह्मगिरि , संगलकल्लु, पिखलीहल , मास्की, नागार्जुनकोण्डा उन्तुर नरजीपुर और टेक्कलकोटा, पूर्वी क्षेत्र में दाओजली, हैडिंग, चिरन्द और बारूडीह.
बुर्जाहोम का अर्थ है- जन्म स्थान, श्रीनगर से उतर- पश्चिम की ओर 16 कि.मी. दूर यहाँ लोग झील के किनारे गर्तवासों (गड्ढों) में रहते थे , शिकार और मछली पर जीते थे. गड्ढे गोल, चैकोर , अण्डाकार या आयाताकार होते थे, बडे़ गड्ढों के मुख का व्यास 2.7 मीटर तक तथा तल की चैडाई 4.6 मीटर तक थी , दीवारों पर मिटृी की पुताई.
गुफ्फकरल श्रीनगर से 41 कि. मी. दूर यहाँ के लोग कृषि और पशुपालन दोनों धंधे करते थे, कश्मीर के लोग पत्थर के पालिशदार औजारों के साथ- साथ हड्डी के औजारों का भी प्रयोग करते थे.
बुर्जाहोम के अलावा चिरन्द (पटना से 40 कि.मी. पश्चिम ) ऐसा अकेला स्थान है जहाँ हड्डी से बने अनेक किस्म् के औजार प्राप्त, बुर्जाहोम के लोग रुखड़े मृदभाडों का प्रयोग करते थे.
कब्रों में संगलकल्लु नामक स्थान से नवपाषाण काल के सबसे पुराने अवशेष पाये गए.
ये पत्थर की कुल्हाडियों का और कई तरह के प्रस्तर - फलकों का भी प्रयोग करते थे.
ये जानवर भी पालते थे.
सिलबट्टे के प्रयोग से ज्ञात होता है कि वे अनाज पैदा करना जानते थे.
नवपाषाण युग के लोग पालिशदार पत्थर के औजार और हथियारों का प्रयाग और गाय , बैल , बकरी , भेड आदि पालते थे.
इस युग के निवासी सबसे पुराने कृषक समुदाय थे, बर्तनों के प्रयोग की आवश्यकता महसूस करने की वजह से कुम्भकारी सबसे पहले इस अवस्था में दिखाई देती है.
No comments:
Post a Comment