भारतीय चित्रकला के
आरंभिक साक्ष्य प्रागैतिहासिक काल से ही प्राप्त होने लगते हैं . होशंगाबाद और
भीमबेटका (भोपाल से 40 किमी दक्षिण ) के गुफा चित्र प्राचीन भारतीय शैल चित्रकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं .
पुरातत्वविदों के अनुसार भीमबेटका की गुफाओं से प्राप्त कुछ चित्र लगभग 30000 वर्ष
पुराने हैं .समय विस्तार की दृष्टि से देखें तो ये चित्र पुरा पाषाणकाल से लेकर
आरंभिक मध्यकाल तक के हैं .भीमबेटका की लगभग 500 गुफाओं में शैल चित्र प्राप्त हुए हैं. ये चित्र न सिर्फ गुफाओं की दीवारों पर उकेरे गए हैं ,
बल्कि उनकी ऊंची छतों पर भी उत्कीर्ण हैं . चित्रों में ज़्यादातर श्वेत और लाल
रंगों का प्रयोग मिलता है . कहीं कहीं हरे और पीले रंगों का प्रयोग भी दिखता है .
रंगों को बनाने के लिए संभवतः मैंगनीज़ , हैमेटाईट , लाल पत्थर , लकड़ी का
कोयले , हरी पत्तियों और पशुओं की चर्बी
का इस्तेमाल किया जाता था .
भीमबेटका का नामकरण महाभारत के पात्र भीम के नाम
पर हुआ माना जाता है . इसका शाब्दिक अर्थ है –‘भीम की बैठक’ . भीमबेटका की गुफाओं
की खोज 1957-58 में पुरातत्वविद विष्णु वाकनकर ने की .
इन चित्रों में
शिकार के दृश्यों के अतिरिक्त स्त्रियों और पशु – पक्षियों के चित्र बहुतायत मिलते
हैं . मध्य पाषाण काल के चित्रों में आदिमानव द्वारा प्रयोग किये जाने वाले अस्त्र
–शस्त्रों , पक्षियों के चित्रों के अतिरिक्त विविध विषयों के चित्र मिलते हैं .
इनमें सामूहिक नृत्य, मां और बच्चे का चित्र , वाद्य यंत्रों के चित्र तथा गर्भवती
महिला के चित्र उल्लेखनीय हैं .
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