हड़प्पा सभ्यता - कला का विकास - सामान्य अध्ययन-भूगोल, विज्ञान, इतिहास, कला और संस्कृति

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Saturday, October 7, 2017

हड़प्पा सभ्यता - कला का विकास

हड़प्पा सभ्यता की खोज भारतीय कला के इतिहास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसने भारतीय कला के विकास में एक गौरवपूर्ण अध्याय जोड़ा है. हड़प्पाई स्थलों से प्राप्त चित्रित मृद्भांड (BSRW) ,कांस्य मूर्तियाँ ,पाषाण मूर्तियाँ आदि कलात्मकता की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं. मुद्राओं पर हाथी ,बैल, गैंडा ,भैंसा , कुत्ता ,कछुआ आदि के चित्र प्राप्त हुए हैं. एक मुद्रा पर एक सींग वाले व्यक्ति का अंकन का है ,जिसके चारों ओर विभिन्न पशु हैं. इसे शिव का आदि रूप पशुपति माना गया है. एक मुद्रा पर एक योगी और एक फुंफकारते हुए सर्प का चित्रण है.
Dancing Girl of  Mohenjodaro PC: http://www.nationalmuseumindia.gov.in

मोहनजोदड़ो से प्राप्त नर्तकी की कांस्य प्रतिमा - यह भारत की पहली धातु मूर्ति के रूप में ख्यात है . इस नग्न आकृति का बांयां हाथ चूड़ियों से भरा हुआ है, जबकि दाहिना हाथ कूल्हे पर है.   इसके गले में हार है और बालों का जूड़ा बना हुआ है. वर्तमान में 5.5" लम्बी यह मूर्ति राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली में रखी हुई है.

हड़प्पा से प्राप्त पुरुष धड़ - हड़प्पा से प्राप्त पुरुष धड़ लाल चूना पत्थर से बनी मूर्ति का है. सामने से बनी हुई 3" की यह मूर्ति भी नग्न है. पेट की बनावट प्राणायाम करते योगी की तरह है.

मातृदेवी - टेराकोटा निर्मित मातृदेवी की मूर्ति कई हड़प्पाई स्थलों से प्राप्त हुई है. चौड़े कूल्हे , गहनों से भरा भारी वक्ष स्थल तथा  विस्तृत केश सज्जा इन मूर्तियों में देखी जा सकती है. इससे प्राचीन भारतीय संस्कृति में मातृ पूजा का प्रमाण मिलता है. संभवतः यह जीवन तथा उर्वरता का प्रतीक रही होगी. स्कर्ट पहने इन मूर्तियों के सिर पर पंखानुमा पगड़ियाँ भी हैं.

कूबड़दार बैल की मुहर  - मोहनजोदड़ो से प्राप्त सेलखड़ी की कुछ मुद्राओं पर कूबड़ वाले बैल का अंकन है. मुहर को उभार कर बैल की आकृति बनाई गई है. बैल के लम्बे सींग ,झालरदार गर्दन तथा लम्बी पूँछ बनाने में काफी कलात्मकता दिखाई गई है.

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