वर्तमान पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में लगभग 2500
ई पू के आसपास हड़प्पा सभ्यता (परिपक्व चरण) पल्लवित हुई. परिपक्व हड़प्पा सभ्यता को
ताम्र-पाषाण युग के तीसरे चरण की सभ्यता माना जाता है.
सभ्यता का पहला उत्खनित स्थल हड़प्पा है, जिसका उत्खनन 1921 में श्री दयाराम
साहनी के नेतृत्व में हुआ. 1922 में राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो का उत्खनन किया.
पुरातात्विक प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता का विकास अनायास या
रातोंरात नहीं हुआ, बल्कि पूर्ववर्ती सभ्यताओं के चरणबद्ध विकास ने अंततः हड़प्पा
जैसी विकसित नागरिक सभ्यता का रूप लिया.
उद्भव और विकास :
हड़प्पा सभ्यता के उद्भव और विकास को चार चरणों
में देखा जा सकता है...
(क) प्रथम चरण : इस चरण में पूर्वी बलूचिस्तान में घुमक्कड़ पशुचारकों का स्थायी कृषि की ओर उन्मुख होना देखा जा सकता है. भेड़ और बकरी जैसे पशुओं को पालने के प्रमाण भी इस चरण में मिलते हैं. इस चरण में फ्लेक और प्रस्तर निर्मित उपकरणों का प्रयोग देखा गया है. हस्तनिर्मित मृद्भांड भी कई स्थलों से प्राप्त हुए हैं. किली गुल मुहम्मद. रानी घुंडई, डाबरकोट, अंजीरी आदि इस चरण के महत्वपूर्ण प्राप्त स्थल हैं.
(क) प्रथम चरण : इस चरण में पूर्वी बलूचिस्तान में घुमक्कड़ पशुचारकों का स्थायी कृषि की ओर उन्मुख होना देखा जा सकता है. भेड़ और बकरी जैसे पशुओं को पालने के प्रमाण भी इस चरण में मिलते हैं. इस चरण में फ्लेक और प्रस्तर निर्मित उपकरणों का प्रयोग देखा गया है. हस्तनिर्मित मृद्भांड भी कई स्थलों से प्राप्त हुए हैं. किली गुल मुहम्मद. रानी घुंडई, डाबरकोट, अंजीरी आदि इस चरण के महत्वपूर्ण प्राप्त स्थल हैं.
(ख) द्वितीय चरण : इस चरण में ताम्र प्रयोग के
साक्ष्य मिलते हैं. बड़े ग्रामों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ
नगरों के उदय की दृष्टि से यह चरण महत्वपूर्ण है. हस्तनिर्मित और चाक से बने
मृद्भांडों पर ज्यामितीय चित्र अंकित मिलते हैं. इस चरण के महत्वपूर्ण स्थल हैं-
किली गुल मुहम्मद, मुंडीगक, दम्बसादात, रानी घुंडई और नाल.
(ग) तृतीय चरण : ग्रामीण जीवन के स्थिरीकरण के साथ क्षेत्रीयकरण के प्रमाण इस चरण में दिखाई देते हैं. ताम्र और कांस्य के पिन और चाकू जैसे उपकरण प्राप्त हुए हैं. स्त्रियों और पशुओं की प्रतिमाओं की प्राप्ति कई स्थलों से हुई है. मृद्भांडों पर पक्षियों के चित्र भी मिलते हैं. दक्षिणी बलूचिस्तान, दक्षिण पश्चिम सिंध, मोहनजोदड़ो, मुंडीगक, दम्बसादात, रानी घुंडई, आमरी, कोटदीजी और कालीबंगन आदि इस चरण के प्रमुख स्थल हैं.
(ग) तृतीय चरण : ग्रामीण जीवन के स्थिरीकरण के साथ क्षेत्रीयकरण के प्रमाण इस चरण में दिखाई देते हैं. ताम्र और कांस्य के पिन और चाकू जैसे उपकरण प्राप्त हुए हैं. स्त्रियों और पशुओं की प्रतिमाओं की प्राप्ति कई स्थलों से हुई है. मृद्भांडों पर पक्षियों के चित्र भी मिलते हैं. दक्षिणी बलूचिस्तान, दक्षिण पश्चिम सिंध, मोहनजोदड़ो, मुंडीगक, दम्बसादात, रानी घुंडई, आमरी, कोटदीजी और कालीबंगन आदि इस चरण के प्रमुख स्थल हैं.
(घ) चतुर्थ चरण: यह हड़प्पा सभ्यता का परिपक्व चरण
है. यहाँ बड़े नगरों का उदय और उद्योग धंधों के विकास के साक्ष्य प्राप्त होते हैं.
(ङ) पंचम चरण: यह परिपक्व हड़प्पा सभ्यता के अवसान
का काल है. बड़े-बड़े नगर धीरे-धीरे विलुप्त होते जाते हैं. इसे कब्रिस्तानी
संस्कृति या सेमेट्री एच कल्चर भी कहते हैं.
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